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बीजेपी के लिए 2024 चुनाव: राम मंदिर के बाद चुनौती भरी मेहनत का समय

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2024 चुनाव: राम मंदिर उद्घाटन के बाद बीजेपी को आंकड़ों में मेहनत की जरुरत, जाहिर है कि बीजेपी को अभी बहुत मेहनत करनी होगी।

Narendra Modi

बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में 370 सीटों का लक्ष्य रखा है, जिसमें यह ज़रूरी है कि वे उनके पिछले कार्यकाल की सफलता को दोहराएं। 2019 में, उन्होंने 303 सीटों की जीत हासिल की थी, लेकिन अब 370 सीटों का लक्ष्य पूरा करना उनके लिए मुश्किल हो सकता है। यहाँ तक कि अगर वे अपने पिछले प्रदर्शन को भी दोहराने में सफल हो जाते हैं, तो भी देश की वर्तमान परिस्थितियों और विपक्षी दलों के साथ-साथ मानव संख्या और राज्यों की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में इस उद्देश्य को पूरा करना बड़ी चुनौती होगी। बीजेपी को नए राज्यों और समाजों में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए भी प्रयास करना होगा। इस संदर्भ में, भारतीय जनता पार्टी के लिए वास्तविक चुनौतियों का सामना करना अभी और भी कठिन हो गया है।

1-पंजाब-हरियाणा- हिमाचल-कश्मीर और दिल्ली में इस बार मुश्किल

बीजेपी की लोकप्रियता भारतवर्ष में व्यापक रूप से बढ़ी है, लेकिन उत्तर भारत में पंजाब और दिल्ली में जनता असंतुष्टि जाहिर कर रही है । बीजेपी ने इन राज्यों में अपनी बढ़त के लिए कई प्रयास किए हैं, लेकिन यहां सीटों की जीत अब भी मुश्किल है। पंजाब में, बीजेपी का प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी है, और शिरोमणी अकाली दल भी उनके साथ नहीं है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बीजेपी के लिए पहला अद्वितीय चुनाव है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने से यहाँ पर बीजेपी को बड़ी मुश्किल है। दिल्ली में, आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के साथ मुकाबला किया है, और इससे स्थिति अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है।

2-यूपी में सीट बढ़ाना टेढ़ी खीर होगा

2019 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी 80 सीटों में से 62 जीती थी, जबकि दो सीटें सहयोगी दलों ने जीती थीं। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन 2014 की सफलता को दोहराने में असमर्थ रही। बसपा को 10 सीटें मिलीं थीं जबकि सपा को केवल 5 सीटें मिलीं। 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन के साये में होने की संभावना है, और अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के बीच सहमति हो चुकी है। कांग्रेस के साथ भी सीटों का सहयोग हो सकता है, और सपा ने कांग्रेस को 11 सीटों की पेशकश की है। अगर इस संधि का नतीजा होता है, तो बीजेपी के लिए पुराने प्रदर्शन को दोहराना और अधिक मुश्किल होगा।

पूर्वी यूपी के कई जिलों में पिछली बार बीजेपी ने जीत हासिल की थी, लेकिन हाल ही में हुए घोसी उपचुनाव में उनके लिए मुश्किलाएं बढ़ गईं। बीजेपी ने यहां से टिकट दिया था, फिर भी वे जीत नहीं सकीं। इससे यूपी में 370 सीट पर जीत पाना अब चुनौतीपूर्ण लग रहा है

3-पूर्वी भारत इस बार चैलेंज होगा 

बीजेपी को इस बार बंगाल, बिहार और उड़ीसा में अपनी सफलता दोहराना मुश्किल लग रहा है। ओडिशा में बीजेपी की संभावना कम है, क्योंकि यहां अभी तक वे आक्रामक राजनीति नहीं कर रहे हैं। बीजेपी के पास अयोध्या का राम मंदिर है, लेकिन ओडिशा में नवीन पटनायक के पास पुरी का कॉरिडोर है। बंगाल में बीजेपी को उम्मीद नहीं है कि वे अपना पुराना रेकॉर्ड 19 सीटों से आगे बढ़ा पाएंगे। यहां टीएमसी भी मजबूत है, जो बीजेपी को और भी चुनौती देती है।

4-दक्षिण भारत में 25 की बजाय 30 सीट जीते तो कुछ बात बने

बीजेपी के लिए दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों में सफलता प्राप्त करना मुश्किल है। पिछले चुनावों में बीजेपी को यहां से कम सीटें मिलीं हैं, और यहां के समाज में उनकी पहुंच कम है। बीजेपी को अब इन राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ज्यादा मेहनत करनी होगी। यहां के लोगों की मांगों को समझना और उनके साथ संवाद बनाए रखना होगा। इसके लिए बीजेपी को अपनी राजनीतिक दृष्टिकोण को भी समझने की जरूरत होगी। उन्हें स्थानीय मुद्दों को उठाने और समाधान करने का प्रयास करना होगा। ऐसा करके, वे दक्षिण और पूर्वी भारत में अपना प्रभाव मजबूत कर सकते हैं।

5-महाराष्ट्र की मुश्किल

उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक लोकसभा सांसद महाराष्ट्र से ही आते हैं। यहां 48 सीटों में से बीजेपी को 23 सीटें मिली थीं। हालांकि, 2019 के बाद गोदावरी में काफी पानी बह चुका है और महाराष्ट्र के चुनावी समीकरण बदल गए हैं। बीजेपी ने शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर अपने दुश्मनों को कमजोर करने की कोशिश की है, परंतु चुनावी रूप से अब भी पार्टी कमजोर ही महसूस कर रही है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे बिना पार्टी के भी मजबूत हैं। अगर इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग हो जाती है, तो बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल हो सकती है।

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