कर्णपूर्ण समाजवादी नेता और पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री, कर्पूरी ठाकुर को मरने के पश्चात्, उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय किया गया है। यह समाचार देशभर में बड़ी खुशी का कारण बना है, और इससे बिहार राज्य के नातिव-निवासियों में गर्व और आनंद का वातावरण बना हुआ है। जनता के बीच 24 जनवरी को होने वाले कर्पूरी ठाकुर के जन्मशताब्दी समारोह की पूर्वस्तिति में, भारत रत्न प्रदान करने का ऐलान ने समृद्धि और गौरव का अभास कराया है।
प्रमुख समाजवादी नेता और जननायक के रूप में माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जन्म पितौझिया गांव, समस्तीपुर जिले, में हुआ था। उनके पिता, गोकुल ठाकुर, एक सीमांत किसान थे और वे अपने परंपरागत पेशेवर, नाई, का काम करते थे। कर्पूरी ठाकुर ने भारत छोड़ो आंदोलन के समय लगभग ढाई साल कारागार में बिताए। वे जननायक के रूप में 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके आदर्शों की पैरवी लेते हुए, बिहार के विभिन्न बड़े नेता जैसे नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, और सुशील कुमार मोदी ने राजनीति में अपना स्थान बनाया है।
ठाकुर, जो बिहार के नाई परिवार से थे, ने अपनी शिक्षा का आरंभ की और बचपन से ही वे अखिल भारतीय छात्र संघ में रहे। उनके राजनीतिक आदर्शों का स्रोत लोकनायक जयप्रकाश नारायण और समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया रहे। बिहार में पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण की पहल को प्रोत्साहित करने की शुरुआत उनसे हुई थी। कर्पूरी ठाकुर का असामयिक निधन 17 फरवरी 1988 को हुआ था। उनके बाद लालू प्रसाद ने शरद यादव की सहायता से उनके उत्तराधिकारी बने, लेकिन कर्पूरी ठाकुर और लालू यादव के जीवनशैली में कोई सामान्यता नहीं रही।
आज बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती है, जिसे बिहार के साथ-साथ पूरे देशवासियों ने उनके योगदान की याद में मनाया है। कर्पूरी ठाकुर को गरीबों के मसीहा के रूप में समझा जाता है, जो खुद एक बहुत गरीब परिवार से थे। उन्होंने दो बार बिहार के मुख्यमंत्री और एक बार उपमुख्यमंत्री के पद पर कार्य किया। उनकी ईमानदारी का परिचय है, क्योंकि सत्ता मिलने के बावजूद उन्होंने कभी भी उसका दुरुपयोग नहीं किया। उनकी श्रेष्ठता के कई किस्से आज भी लोगों को प्रेरित कर रहे हैं, खासकर बिहार में।