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बागपत की शूटर दादियों की प्रेरणादायक कहानी

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उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के जोहरी गांव की दो महिलाएं, चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर, जिन्होंने 60 की उम्र के बाद निशानेबाजी की दुनिया में कदम रखकर ‘शूटर दादी’ के नाम से मशहूर हुई। उनकी कहानी साहस, समर्पण और आत्मविश्वास की मिसाल है।​

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

चंद्रो तोमर का जन्म 1 जनवरी 1932 को शामली जिले में हुआ था, जबकि प्रकाशी तोमर का जन्म 1 जनवरी 1937 को मुजफ्फरनगर में हुआ। दोनों की शादी बागपत के जोहरी गांव में हुई, जहां वे देवरानी-जेठानी के रूप में एक ही परिवार का हिस्सा बनीं। गांव की पारंपरिक सोच और सीमित संसाधनों के बावजूद, उन्होंने अपने जीवन में कुछ नया करने की ठानी।​

निशानेबाजी की शुरुआत

1999 में, चंद्रो तोमर की पोती शेफाली ने जौहड़ी राइफल क्लब में दाखिला लिया, लेकिन वहां अकेले जाने से डरती थी। उसे प्रोत्साहित करने के लिए चंद्रो उसके साथ गईं। एक दिन, कोच फारुख पठान ने चंद्रो को बंदूक थमाई, और उन्होंने पहली बार में ही लक्ष्य भेद दिया। उनकी इस प्रतिभा को देखकर कोच ने उन्हें शूटिंग जारी रखने की सलाह दी। इसके बाद, उन्होंने गुपचुप प्रैक्टिस शुरू की और जल्द ही प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगीं।​  

प्रकाशी तोमर की प्रेरणा

चंद्रो तोमर की सफलता से प्रेरित होकर, उनकी देवरानी प्रकाशी तोमर ने भी निशानेबाजी में रुचि ली। शुरुआत में लोगों ने उनका मजाक उड़ाया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार अभ्यास करती रहीं। धीरे-धीरे, दोनों ने कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में पदक जीते और ‘शूटर दादी’ के नाम से प्रसिध्द हो गईं।​  

सामाजिक प्रभाव और फिल्म ‘सांड की आंख’

चंद्रो और प्रकाशी तोमर की कहानी ने समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को बदलने में मदद की। उनकी जीवन गाथा पर आधारित फिल्म ‘सांड की आंख’ 25 अक्टूबर 2019 को रिलीज़ हुई, जिसमें तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं। फिल्म ने दर्शकों को महिलाओं की शक्ति और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया।

चंद्रो और प्रकाशी तोमर की कहानी यह साबित करती है कि उम्र केवल एक संख्या है, और आत्मविश्वास और समर्पण से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनकी यात्रा आज भी अनगिनत महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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