समाजसेवा, त्याग और मातृत्व की मिसाल रहीं सिंधुताई सपकाल को आज भी लोग “माई” कहकर याद करते हैं। एक ऐसी महिला, जिनका खुद का जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। बल्कि दूसरों का सहारा बनकर एक इतिहास रच दिया।
1400 बच्चों की ‘अनाथ’ मां बनीं
सिंधुताई ने अपने जीवन में 1400 से अधिक अनाथ बच्चों को गोद लिया और उनका पालन-पोषण किया। कोई बच्चा सड़क पर रोता मिला, कोई स्टेशन पर लावारिस हालत में । सिंधुताई ने हर बच्चे को अपनाया और मां की ममता से सींचा। इन बच्चों में से कई आज डॉक्टर, इंजीनियर, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रशासनिक अधिकारी बन चुके हैं।
रेलवे स्टेशन बना पहला आश्रय
सिंधुताई का जीवन आसान नहीं था। उन्हें उनके ही पति ने गर्भवती अवस्था में घर से निकाल दिया था। उन्होंने रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर खुद को और अपनी बेटी को जिंदा रखा। वहीं से उनका संघर्ष और सेवा का सफर शुरू हुआ। बिना किसी सरकारी सहायता के उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी।
सम्मान और पहचान
- पद्मश्री पुरस्कार (2021)
- 100 से अधिक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड
- कई डॉक्यूमेंट्री और किताबें उनकी ज़िंदगी पर आधारित हैं
- उन्हें ‘Mother of Orphans’ यानी “अनाथों की मां” कहा जाता है
2022 में दुनिया से विदा
4 जनवरी 2022 को सिंधुताई सपकाल ने अंतिम सांस ली, लेकिन उनका जीवन और कार्य आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देता है। उनकी विरासत को उनके गोद लिए बच्चे और संस्थाएं आज भी आगे बढ़ा रहे हैं सिंधुताई सपकाल का जीवन एक ऐसी सच्ची कहानी है, जो बताती है कि इंसान चाहे तो खुद टूटकर भी दूसरों को संभाल सकता है। उन्होंने साबित किया कि ‘मां’ सिर्फ जन्म देने वाली नहीं होती – वह पालने वाली भी हो सकती है।