शीतल देवी यह नाम आज न केवल पैरा-आर्चरी की दुनिया में जाना जाता है, बल्कि यह जज़्बे, मेहनत और आत्मविश्वास की मिसाल भी बन चुका है। दोनों हाथ न होने के बावजूद शीतल ने जो मुकाम हासिल किया है, वह न सिर्फ खिलाड़ियों के लिए बल्कि आम लोगों के लिए भी प्रेरणा बन गया है। शीतल ने बिना हाथों के महिला तीरंदाजी में एशियन पैरा गेम्स में गोल्ड मेडल जीता।
कठिनाइयों से भरी शुरुआत
जम्मू-कश्मीर के कटरा क्षेत्र में जन्मी शीतल देवी का जीवन शुरुआत से ही संघर्षों से भरा रहा। जन्म से ही वह एक दुर्लभ स्थिति “फोकोमेलिया सिंड्रोम” से पीड़ित थीं, जिसकी वजह से उनके दोनों हाथ विकसित नहीं हो पाए। लेकिन इस शारीरिक कमी को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बना लिया।
पैरों से थामी सफलता की डोर
शीतल ने अपनी मेहनत से वह कर दिखाया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। उन्होंने आर्चरी की ट्रेनिंग शुरू की और अपने पैरों से धनुष चलाना सीखा। यह सुनने में जितना असंभव लगता है, शीतल ने उतनी ही सहजता और अभ्यास से इसे संभव कर दिखाया।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर धमाकेदार प्रदर्शन
2023 में चीन के हांगझोउ में हुए एशियन पैरा गेम्स में शीतल देवी ने इतिहास रच दिया। उन्होंने न सिर्फ गोल्ड मेडल जीता, बल्कि वह एशियन पैरा गेम्स में गोल्ड जीतने वाली भारत की पहली महिला तीरंदाज बन गईं। इसके बाद से उनके नाम की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी।
अवॉर्ड्स और सम्मान
- 2024 में उन्हें भारत सरकार की ओर से अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
- कई निजी और सरकारी संस्थाओं ने शीतल को उनकी उपलब्धियों और संघर्षों के लिए सम्मानित किया।
प्रेरणा का स्रोत
शीतल देवी की सफलता ने यह साबित कर दिया कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। वह न केवल दिव्यांगजनों के लिए, बल्कि सभी युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं।
कोच और परिवार का समर्थन
शीतल की सफलता के पीछे उनके कोच कुलदीप वर्मा और परिवार की अहम भूमिका रही है। उनके कोच ने उन्हें कभी किसी आम खिलाड़ी से कम नहीं समझा और शीतल ने भी उम्मीदों से कहीं आगे प्रदर्शन कर दिखाया।
शीतल देवी की कहानी हमें यह सिखाती है कि जब हौसले बुलंद हों, तो कोई भी शारीरिक बाधा मायने नहीं रखती। उन्होंने साबित कर दिया है कि “अगर कुछ करने की ठान लो, तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हें रोक नहीं सकती।”