दीपा मलिक एक ऐसी खिलाड़ी जिसने अपनी लगन और मेहनत से लोगों के दिलों पर राज किया है। पैरालंपिक खेलों में इनकी अलग ही पहचान है। दीपा मलिक की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। एक साधारण लड़की, जिसने असाधारण चुनौतियों का सामना करते हुए, अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से इतिहास रच दिया।
दीपा का जन्म 30 सितंबर 1970 को हरियाणा के सोनीपत में हुआ था। बचपन से ही उनमें खेलों के प्रति गहरा लगाव था, लेकिन, 8 साल की उम्र में, एक ट्यूमर के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी में दिक्कत शुरू हो गई। इसके बाद, 1999 में, उन्हें एक और भयानक झटका लगा। रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर के कारण उन्हें लकवा मार गया। कमर से नीचे का हिस्सा पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया।
इस घटना ने दीपा को तोड़कर रख दिया, लेकिन दीपा ने हार नहीं मानी। उन्होंने व्हीलचेयर को अपनी साथी बनाया और अपने सपनों को पूरा करने का दृढ़ संकल्प लिया। दीपा ने तैराकी से शुरुआत की और जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। इसके बाद, उन्होंने भाला फेंक, गोला फेंक और चक्का फेंक, तैराकी जैसे एथलेटिक्स खेलों में भी भाग लेना शुरू किया। उनकी मेहनत और लगन रंग लाई, और उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते।
2016 में, दीपा ने रियो पैरालंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने गोला फेंक में रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
दीपा मलिक की कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं है। यह एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाया। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर आपके अंदर जज्बा है, तो कोई भी बाधा आपको अपने सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकती।
दीपा मलिक आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वह न केवल एक महान खिलाड़ी हैं, बल्कि एक समाजसेविका और एक प्रेरक वक्ता भी हैं। उन्होंने विकलांग लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है और उन्हें खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया है। दीपा मलिक को अर्जुन अवॉर्ड, पदमाश्री अवॉर्ड, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है।
दीपा मलिक का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। हमें अपने सपनों का पीछा करते रहना चाहिए और अपनी क्षमताओं पर विश्वास रखना चाहिए।