बिहार के गया जिले के गहलौर गांव के एक साधारण मजदूर दशरथ मांझी ने ऐसा काम कर दिखाया, जिसे आज भी दुनिया सलाम करती है। उन्हें “पर्वत पुरुष” कहा जाता है – और ये नाम उन्होंने यूं ही नहीं कमाया। मांझी ने अपनी पत्नी की याद में अकेले दम पर पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया, ताकि उनके जैसे किसी और को समय पर इलाज न मिलने के कारण अपनों को न खोना पड़े।
यह कहानी है 1960 के दशक की, जब गहलौर गांव पूरी तरह से एक विशाल पहाड़ी के कारण मुख्य शहर से कटा हुआ था। गांव से अस्पताल तक पहुंचने के लिए 70 किलोमीटर का लंबा और कठिन रास्ता तय करना पड़ता था। एक दिन मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी पहाड़ी से गिर गईं और समय पर इलाज न मिलने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। यही हादसा दशरथ मांझी के जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया।
प्यार से शुरू हुई एक असाधारण जंग
अपनी पत्नी की मौत के बाद दशरथ मांझी ने ठान लिया कि वह पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे। बिना किसी सरकारी सहायता के, सिर्फ एक हथौड़ा और छैनी लेकर उन्होंने इस असंभव से लगने वाले काम की शुरुआत की। गांव के लोग पहले उन्हें पागल समझते थे, लेकिन मांझी ने 22 साल तक बिना रुके, बिना थके अपने मिशन को जारी रखा।
22 वर्षों की मेहनत का फल
दशरथ मांझी की मेहनत रंग लाई। उन्होंने 110 मीटर लंबा, 9.1 मीटर चौड़ा और 7.6 मीटर गहरा रास्ता बना दिया। इस रास्ते की वजह से अब गांव से शहर तक की दूरी 70 किलोमीटर से घटकर सिर्फ 15 किलोमीटर रह गई। उनके इस कार्य से हजारों लोगों को फायदा हुआ और गांव की तस्वीर ही बदल गई।
सम्मान और स्मृति
दशरथ मांझी का योगदान राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना गया। 2007 में कैंसर के कारण उनका निधन हो गया, लेकिन बिहार सरकार ने उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी। 2016 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया। 2015 में उनकी जीवन पर आधारित फिल्म “मांझी – द माउंटेन मैन” भी बनी, जिसमें अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने उनका किरदार निभाया।
दशरथ मांझी की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इरादे मजबूत हों और दिल में प्यार हो, तो कोई भी पहाड़ रास्ता नहीं रोक सकता।