उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 69 हजार सहायक शिक्षकों की बहुचर्चित भर्ती एक बार फिर सुर्खियों में है। इस भर्ती में अनुसूचित जाति (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए निर्धारित आरक्षण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 21 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की है, लेकिन पीड़ित अभ्यर्थी चाहते हैं कि यह सुनवाई गर्मी की छुट्टियों के दौरान ही हो ताकि न्याय में देरी न हो।
क्या है मामला?
अभ्यर्थियों का आरोप है कि 69 हजार शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में OBC और SC वर्ग के अभ्यर्थियों को उचित आरक्षण नहीं दिया गया। उनका कहना है कि सरकार और संबंधित अधिकारियों ने जानबूझकर इन वर्गों को कम सीटें आवंटित कीं, जिससे बड़ी संख्या में आरक्षित वर्ग के योग्य अभ्यर्थी चयन से वंचित रह गए।
पीड़ित अभ्यर्थियों की मांग
- पीड़ित अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगा रहे हैं कि गर्मी की छुट्टियों में ही मामले की सुनवाई हो, ताकि फैसला जल्द आ सके।
- इसके लिए वे कोर्ट में जल्द सुनवाई की अर्जी (mentioning application) दाखिल करने जा रहे हैं।
- अभ्यर्थियों का कहना है कि न्याय में देरी का सीधा असर उनके करियर पर पड़ रहा है।
अधिकारियों पर गंभीर आरोप
कई अभ्यर्थियों ने यह भी आरोप लगाया है कि आरक्षण नियमों का उल्लंघन करके कुछ वर्गों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई। सोशल मीडिया और विभिन्न मंचों पर अभ्यर्थियों ने भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। वहीं राज्य सरकार की ओर से अब तक इस मामले में कोई ठोस जवाब सामने नहीं आया है।
क्या कहता है कानून?
संविधान के अनुसार, सरकारी नौकरियों में SC, ST और OBC वर्गों को आरक्षण का अधिकार प्राप्त है। उत्तर प्रदेश में यह आरक्षण व्यवस्था स्पष्ट रूप से परिभाषित है, और किसी भी तरह की गड़बड़ी कानूनी प्रक्रिया के तहत न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
अब सभी की नजरें 21 जुलाई को होने वाली सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं। यदि कोर्ट जल्द सुनवाई की मांग पर सहमति देता है, तो यह मामला गर्मी की छुट्टियों में ही निपटाया जा सकता है, जो हजारों अभ्यर्थियों के लिए राहत की बात होगी।