वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है, जिसमें सरकार और विपक्ष आमने-सामने हैं। यह कानून, जिसे ‘उम्मीद अधिनियम’ के रूप में भी जाना जाता है, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में बदलाव के लिए लाया गया है।
विपक्ष की आपत्तियाँ
विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इस कानून को धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता पर हमला बताया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि यह कानून इस्लाम की बुनियादी धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करता है। उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ डीड की अनिवार्यता पुराने वक्फों के लिए समस्याएं उत्पन्न करेगी।
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। DMK, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई संगठनों ने इसे संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन बताया है, जो धार्मिक संस्थाओं को अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि इस कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया कि 5 मई तक कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी और वक्फ संपत्तियों में कोई बदलाव नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि संपत्ति की प्रकृति धार्मिक हो सकती है, लेकिन मामला अधिकार और प्रशासन का है। उन्होंने यह भी कहा कि पुराने स्मारकों की सुरक्षा के लिए कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस कानून को संघीय ढांचे के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा की है। वहीं, बीजेपी नेता के. अन्नामलाई ने DMK पर मुसलमानों को गुमराह करने का आरोप लगाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने का निर्णय लिया है और केंद्र सरकार को एक सप्ताह में संयुक्त जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई की तारीख की घोषणा जल्द की जाएगी।
यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार और सरकारी नियंत्रण के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।