वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार को केंद्र सरकार ने अपनी दलीले पेश कीं। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कहा कि वक्फ सिर्फ एक इस्लामी अवधारणा है। यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
लाइव लॉ के मुताबिक, केंद्र ने कहा कि इस्लाम में वक्फ का मतलब केवल दान है, इसके अलावा कुछ नहीं। दान को हर धर्म में मान्यता प्राप्त है। इसलिए इसे धर्म का अनिवार्य सिद्धांत नहीं माना जा सकता। तुषार मेहता ने तर्क दिया कि वक्फ बाय यूजर कोई मौलिक अधिकार नहीं है। यह केवल वैधानिक मान्यता है, जिसे छीना जा सकता है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, बल्कि यह केवल एक दान की प्रक्रिया है। सरकार ने तर्क दिया कि वक्फ धार्मिक स्वतंत्रता के तहत मौलिक अधिकार नहीं है और इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत सुरक्षा नहीं दी जा सकती।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा, “वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं है। वक्फ इस्लाम में केवल दान है।”
केंद्र सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की सीमित संख्या में नियुक्ति केवल प्रशासनिक और धर्मनिरपेक्ष कार्यों के प्रबंधन के लिए है, और यह किसी भी धार्मिक गतिविधि को प्रभावित नहीं करता।