क्या आप भी रातभर करवटें बदलते हैं? क्या आपकी नींद बार-बार टूटती है या पूरी नहीं हो पाती? अगर हां, तो यह सिर्फ थकान ही नहीं बल्कि आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बन सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, नींद सिर्फ शरीर को आराम देने का जरिया नहीं है, बल्कि यह हमारे दिमाग और इमोशनल हेल्थ को रीसेट करने की प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। जब हम गहरी और गुणवत्तापूर्ण नींद लेते हैं, तो मस्तिष्क दिनभर की घटनाओं को प्रोसेस करता है, इमोशंस को संतुलित करता है और तनाव को मैनेज करने में मदद करता है।
लेकिन लगातार नींद की कमी से दिमाग की यह कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है। इससे व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, चिंता (Anxiety), डिप्रेशन, फोकस में कमी, और निर्णय लेने की क्षमता में गिरावट देखी जा सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 6 घंटे से कम सोने वाले लोगों में मानसिक रोगों का खतरा दोगुना होता है। नींद की कमी का सीधा असर हमारे हार्मोनल बैलेंस, मेमोरी और मूड पर पड़ता है।
नींद पूरी न होने से बढ़ने वाली दिक्कतें क्या हैं?
स्ट्रेस हार्मोन (कॉर्टिसोल) बढ़ता है
खराब नींद का एक बड़ा प्रभाव तनाव और चिंता (anxiety) पर भी पड़ता है. जब शरीर और मस्तिष्क पूरी तरह से रेस्ट नहीं करते तो स्ट्रेस हार्मोन (कॉर्टिसोल) का स्तर बढ़ने लगता है. इससे मन में बेचैनी, डर और घबराहट जैसी भावना बनी रहती है. कई बार यह स्थिति पैनिक अटैक तक पहुंच सकती है.
खराब नींद के मानसिक असर
मूड स्विंग और चिड़चिड़ापन बढ़ता है- कम नींद लेने से दिमाग शांत नहीं हो पाता, जिससे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा, रोना या गुस्सा आना आम हो जाता है. तनाव और एंग्जायटी बढ़ती है.
डिप्रेशन का खतरा बढ़ता है
लगातार खराब नींद से दिमाग में निगेटिव सोच बढ़ती है और व्यक्ति मानसिक रूप से टूटने लगता है. ध्यान और फोकस कमजोर होता है. नींद पूरी न होने पर दिमाग एक जगह टिक नहीं पाता, जिससे कन्फ्यूजन और डिसीजन मेकिंग में दिक्कत होती है. जिससे याददाश्त भी कमजोर होती है.
क्या करें नींद बेहतर बनाने के लिए?
1 हर दिन एक ही समय पर सोने और जागने की आदत डालें
2 सोने से पहले स्क्रीन टाइम (मोबाइल/टीवी) कम करें
3 बहुत भारी खाना या कैफीन रात में न लें
4 सोने से पहले हल्का म्यूजिक, किताब या मेडिटेशन करें
5 कमरे को शांत, ठंडा और अंधेरा रखें