Homeन्यूज़कांचा गाचीबोवली आंदोलन बना हरियाली का प्रतीक, जंगल को काटने पर सरकार ने लगाई रोक

कांचा गाचीबोवली आंदोलन बना हरियाली का प्रतीक, जंगल को काटने पर सरकार ने लगाई रोक

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हैदराबाद में पर्यावरण की रक्षा के लिए शुरू हुआ कांचा गाचीबोवली आंदोलन अब एक नई चेतना की मिसाल बन चुका है। यह आंदोलन न सिर्फ स्थानीय लोगों की आवाज़ बना है, बल्कि यह पूरे देश को यह संदेश दे रहा है कि पेड़ों और जंगलों को बचाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। यह संघर्ष हमें 1970 के दशक के चिपको आंदोलन की याद दिलाता है, जब उत्तराखंड की महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर उन्हें कटने से बचाया था।


कांचा गाचीबोवली आंदोलन क्या है?

हैदराबाद के गाचीबोवली इलाके में एक घना और समृद्ध शहरी वन क्षेत्र  जिसे स्थानीय लोग ‘कांचा’ कहते हैं  अब अतिक्रमण और अंधाधुंध निर्माण की चपेट में है। इस क्षेत्र में निर्माण कार्य के नाम पर पेड़ों की कटाई शुरू की गई, जिसके खिलाफ स्थानीय नागरिक, पर्यावरण कार्यकर्ता और छात्रों ने मोर्चा खोल दिया।


लोगों ने किया शांतिपूर्ण प्रदर्शन

लोगों ने धरना, मानव श्रृंखला, पोस्टर प्रदर्शन और सोशल मीडिया कैंपेन जैसे कई तरीकों से प्रशासन को जगाने की कोशिश की। उनका एक ही नारा था पेड़ नहीं तो सांस नहीं। इस आंदोलन ने हर आयु वर्ग को जोड़ लिया बच्चे, बुजुर्ग, युवा सभी जंगल को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए।


 चिपको आंदोलन से प्रेरणा

यह आंदोलन चिपको आंदोलन की तर्ज पर आगे बढ़ा। फर्क सिर्फ इतना है कि अब हथियार मोबाइल, सोशल मीडिया और कानूनी रास्ते हैं। पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि कांचा जैसे जंगल सिर्फ हरियाली नहीं, बल्कि शहर की सांसें हैं। इन्हें नष्ट करना खुद अपनी सेहत के खिलाफ कदम है।


मांगें और उम्मीदें

  • कांचा क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया जाए
  • निर्माण कार्य पर तत्काल रोक लगे
  • वन विभाग और प्रशासन से पारदर्शिता की मांग
  • हरित पट्टी को सुरक्षित रखने के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़े

 पर्यावरण का मुद्दा अब सिर्फ पहाड़ों का नहीं

पहले जहां जंगलों की लड़ाई उत्तराखंड, झारखंड या पूर्वोत्तर राज्यों में देखी जाती थी, अब शहरी भारत भी इस संघर्ष में शामिल हो चुका है। हैदराबाद का यह आंदोलन इस बात का प्रमाण है कि पेड़ों की अहमियत हर किसी के लिए बराबर है।


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