भारत में पेट्रोल की कीमतें हमेशा चर्चा का विषय रही हैं। एक सवाल अक्सर उठता है कि जब कच्चे तेल की कीमतें कम होती हैं या रिफाइनरी से निकला पेट्रोल महज ₹52 प्रति लीटर का होता है, तो फिर आम जनता को वही पेट्रोल ₹94 या उससे भी ज्यादा में क्यों बेचा जाता है?
इसका जवाब छिपा है टैक्स स्ट्रक्चर और अन्य चार्जेज़ में। आइए जानते हैं एक लीटर पेट्रोल की कीमत में क्या-क्या शामिल होता है:
एक लीटर पेट्रोल की लागत का ब्रेकडाउन:
- बेस प्राइस (रिफाइनरी गेट पर कीमत): ₹52
- यानी रिफाइन किया हुआ पेट्रोल जो कंपनियों को मिलता है।
- डीलर का कमीशन: ₹4 – ₹5
- पेट्रोल पंप ऑपरेटर को मिलने वाला मार्जिन।
- केंद्र सरकार का एक्साइज ड्यूटी: ₹19.90 (लगभग)
- केंद्र सरकार पेट्रोल पर फिक्स टैक्स वसूलती है, जो कीमत कम या ज्यादा होने पर नहीं बदलता।
- राज्य सरकार का वैट / टैक्स: ₹13 – ₹25 (राज्य अनुसार अलग-अलग)
- हर राज्य अपने हिसाब से पेट्रोल पर टैक्स लगाता है, दिल्ली में अलग तो मुंबई में अलग।
इस प्रकार 52 रुपए वाला पेट्रोल कैसे 94 रुपए का हो जाता है?
घटक | लागत (₹) |
---|---|
बेस प्राइस (रिफाइनरी से) | ₹52 |
डीलर का मार्जिन | ₹4 |
केंद्र सरकार का टैक्स | ₹20 |
राज्य सरकार का टैक्स | ₹18 |
कुल कीमत | ₹94 |
(नोट: यह आंकड़े विभिन्न स्रोतों से औसतन लिए गए हैं, राज्यों के अनुसार थोड़े कम-ज्यादा हो सकते हैं।)
क्या पेट्रोल की कीमतें घट सकती हैं?
- यदि केंद्र और राज्य सरकारें टैक्स में कटौती करें, तो जनता को सस्ता पेट्रोल मिल सकता है।
- लेकिन टैक्स सरकार की बड़ी आमदनी का हिस्सा होते हैं, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास योजनाओं को फंड मिलता है।
आप जो ₹94 में पेट्रोल भरवाते हैं, उसमें से लगभग ₹38 से ₹45 केवल टैक्स और अन्य चार्जेस होते हैं। असली पेट्रोल की कीमत मात्र ₹52 के आसपास होती है अगली बार जब पेट्रोल की कीमत से आप चौंकें, तो याद रखिए — इसमें सरकारों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है।