नोएडा प्राधिकरण द्वारा की गई स्पोर्ट्स सिटी परियोजनाओं की जांच में गंभीर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने ₹9,000 करोड़ के घोटाले के आरोपों की जांच के लिए तीन प्राथमिकी दर्ज की हैं, जिसमें नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों और प्रमुख रियल एस्टेट कंपनियों—लोटस ग्रीन कंस्ट्रक्शंस, ज़ैनाडू एस्टेट्स और लॉजिक्स इंफ्रा डेवलपर्स—को नामजद किया गया है।
यह घोटाला 2011 से 2014 के बीच नोएडा के सेक्टर 78, 79 और 150 में स्पोर्ट्स सिटी परियोजनाओं के आवंटन, विकास और स्वीकृति से संबंधित है। परियोजनाओं का उद्देश्य विश्व स्तरीय खेल सुविधाओं के साथ आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों का विकास करना था। हालांकि, जांच में पाया गया कि आवंटियों और उप-लीज़धारकों ने नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अनुबंध की शर्तों का कई बार उल्लंघन किया, जिससे राज्य को लगभग ₹9,000 करोड़ का नुकसान हुआ।
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में भी इन अनियमितताओं को उजागर किया गया था, जिसमें बताया गया कि स्पोर्ट्स सिटी परियोजनाओं के लिए भूमि का आवंटन तकनीकी पात्रता मानदंडों के बिना किया गया था। इसके बावजूद, नोएडा प्राधिकरण ने कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए CBI और प्रवर्तन निदेशालय (ED) को जांच के आदेश दिए हैं। अदालत ने नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों और डेवलपर्स के बीच “गंभीर मिलीभगत” की बात कही है, जिससे सार्वजनिक धन का दुरुपयोग हुआ है।
इस घोटाले से प्रभावित हज़ारों होमबायर्स को अब भी अपने फ्लैट्स की रजिस्ट्री का इंतजार है। उच्च न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वे तैयार परियोजनाओं में खरीदारों के नाम पर रजिस्ट्री दो सप्ताह के भीतर पूरी करें।
नोएडा प्राधिकरण ने डेवलपर्स को बकाया भुगतान के लिए नोटिस जारी किए हैं, जिसमें प्रीमियम, ब्याज, लीज़ रेंट और अन्य शुल्क शामिल हैं। यदि निर्धारित समय में भुगतान नहीं किया गया, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला नोएडा के शहरी विकास में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करता है। प्राधिकरण और डेवलपर्स के बीच की मिलीभगत ने न केवल सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि आम जनता के विश्वास को भी आघात पहुंचाया है।