केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक अहम बयान देते हुए कहा है कि देश की शिक्षा नीति का उद्देश्य केवल नौकरी पाने वाले विद्यार्थी तैयार करना नहीं, बल्कि जॉब क्रिएटर (रोजगार उत्पन्न करने वाले) युवाओं को बढ़ावा देना है। इसके साथ ही उन्होंने मातृभाषाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हमें अंग्रेजी पर अनावश्यक निर्भरता छोड़कर स्थानीय भाषाओं और मातृभाषा पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
शिक्षा मंत्री एक कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे, जहां उन्होंने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के विजन पर विस्तार से चर्चा की।
मुख्य बातें:
- नई शिक्षा नीति का मकसद विद्यार्थियों को उद्यमिता और रोजगार सृजन के योग्य बनाना है।
- शिक्षा में मातृभाषा का उपयोग बढ़े, ताकि विद्यार्थियों की सोचने और समझने की क्षमता में सुधार हो।
- अंग्रेजी को जरूरत से ज्यादा महत्व देना छोड़कर स्थानीय भाषाओं को मजबूत किया जाए।
- “आज का युवा सिर्फ नौकरी ढूंढने वाला नहीं, बल्कि रोजगार देने वाला बनना चाहिए,” शिक्षा मंत्री ने कहा।
- तकनीक, नवाचार और स्थानीय जरूरतों के हिसाब से शिक्षा ढांचे को तैयार किया जा रहा है।
मातृभाषा में शिक्षा का महत्व:
शिक्षा मंत्री ने कहा कि बच्चों में रचनात्मक सोच और सृजनात्मकता तब ही पनपती है जब वे अपनी भाषा में सोच और सीख पाते हैं। मातृभाषा में पढ़ाई से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे बेहतर तरीके से समाज में योगदान दे सकते हैं।
अंग्रेजी के प्रति मोह कम करने की अपील:
शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि अंग्रेजी सीखना बुरा नहीं है, लेकिन उसे ज्ञान का एकमात्र माध्यम मान लेना सही नहीं है। दुनिया के कई विकसित देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देकर ही आगे बढ़े हैं।
नई शिक्षा नीति में बदलाव:
- 5+3+3+4 ढांचा
- मल्टीडिसिप्लिनरी शिक्षा
- स्कूल से उच्च शिक्षा तक मातृभाषा को बढ़ावा
- स्टार्टअप कल्चर को शिक्षा में जोड़ने की पहल
केंद्रीय शिक्षा मंत्री का यह बयान आने वाले वर्षों में भारतीय शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव की ओर संकेत कर रहा है। मातृभाषा में शिक्षा और एंटरप्रेन्योरशिप-फोकस्ड लर्निंग से भारत को ज्ञान आधारित समाज बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा।