Homeन्यूज़Kanwar Yatra History: कांवड़ यात्रा का क्या है इतिहास, जाने किसने की थी इसकी शुरुआत, क्या है इसका रहस्य?

Kanwar Yatra History: कांवड़ यात्रा का क्या है इतिहास, जाने किसने की थी इसकी शुरुआत, क्या है इसका रहस्य?

Date:

Share post:

सावन का महीना आते ही भारत के कई हिस्सों में एक विशेष धार्मिक उत्सव की शुरुआत हो जाती है – कांवड़ यात्रा। हजारों-लाखों श्रद्धालु भगवान शिव की भक्ति में लीन होकर अपने कंधों पर कांवड़ उठाकर दूर-दूर से पैदल यात्रा करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत कब और कैसे हुई? इसका इतिहास और रहस्य क्या है? आइए जानते हैं इस पावन परंपरा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कांवड़ यात्रा क्या है?

कांवड़ यात्रा में श्रद्धालु गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख या अन्य पवित्र घाटों पर जाते हैं और उस जल को अपने कंधों पर लकड़ी के दो सिरों पर टंगे बर्तनों (जिसे कांवड़ कहते हैं) में भरकर लाते हैं। फिर इस जल को अपने क्षेत्र के शिव मंदिर में भगवान शिव के शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। इसे ‘जलाभिषेक’ कहा जाता है।

कांवड़ यात्रा का इतिहास

कांवड़ यात्रा का जिक्र प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है। मान्यता है कि इसका संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है।

पौराणिक कथा:

जब समुद्र मंथन हुआ था, तब उसमें से हलाहल विष निकला, जो पूरी सृष्टि को नष्ट कर सकता था। उस समय भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए वह विष स्वयं पी लिया। इससे उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ कहा गया। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव के गले में विष की जलन को शांत करने के लिए देवताओं और भक्तों ने पवित्र गंगाजल से उनका अभिषेक किया। उसी परंपरा को श्रद्धालु आज भी निभाते हैं।

पहला कांवड़िया कौन?

कहते हैं कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था और वह पहला कांवड़िया था। उसने कैलाश से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाया था। रावण का यह कार्य आज की कांवड़ यात्रा का आरंभ माना जाता है।

कांवड़ यात्रा की विशेषताएं:

  • यह यात्रा आमतौर पर सावन महीने के पहले सोमवार से शुरू होकर शिवरात्रि तक चलती है।
  • कांवड़ियों के लिए रास्ते में कई जगह ‘सेवा शिविर’ लगाए जाते हैं जहां उन्हें खाना, दवाई और ठहरने की सुविधा मिलती है।
  • इस यात्रा में भक्त नंगे पांव चलते हैं और ‘बोल बम’, ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाते हैं।
  • कुछ श्रद्धालु विशेष संकल्प लेकर दौड़ते हुए (डाक कांवड़) भी जल लेकर जाते हैं।

आध्यात्मिक संदेश:

कांवड़ यात्रा न सिर्फ एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि यह आत्मसंयम, श्रद्धा और त्याग का प्रतीक भी है। यह यात्रा भक्तों को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने का माध्यम बन जाती है। कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की गहराई से जुड़ी परंपरा है। इसकी शुरुआत चाहे पौराणिक हो या ऐतिहासिक, लेकिन इसका भाव भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक है।

Related articles

Happy Independence Day 2025: तिरंगा हमारी शान है, अपनों को भेजें देशभक्ति से भरे शुभकामना संदेश

Happy Independence Day 2025 Wishes: 15 अगस्त का दिन हर भारतीय के लिए बहुत गर्व का होता है....

Janmashtami 2025: इस बार जन्माष्टमी पर नहीं रहेगा रोहिणी नक्षत्र, जानें पूजा का सही मुहूर्त और विधि

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 को लेकर भक्तों में उत्साह चरम पर है, लेकिन इस बार का पर्व थोड़ा खास...

War 2 Review: ऋतिक-जूनियर NTR की हाई-ऑक्टेन टक्कर भी नहीं बचा पाई बासी कहानी, YRF की बिग बजट फिल्म रही फीकी

यशराज फिल्म्स की बहुप्रतीक्षित एक्शन थ्रिलर ‘वॉर 2’ आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म में ऋतिक...

BIHAR SIR मामला: सुप्रीम कोर्ट का चुनाव आयोग को आदेश –हटाए गए 65 लाख वोटरों की लिस्ट करें सार्वजनिक

बिहार में वोटर लिस्ट रीविजन (SIR) से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम टिप्पणी की।...