दशकों से चले आ रहे सिंधु जल संधि को लेकर एक बार फिर बड़ा भूचाल आया है। पाकिस्तान द्वारा बार-बार उठाई जा रही आपत्तियों के बीच अब वर्ल्ड बैंक ने भी साफ शब्दों में अपना पल्ला झाड़ लिया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक चालों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। वर्ल्ड बैंक का यह रुख पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, जिसने वर्षों तक इस संधि के तहत भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की थी।
क्या है मामला?
पाकिस्तान ने भारत द्वारा बनाए जा रहे किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर आपत्ति जताई थी और वर्ल्ड बैंक से मध्यस्थता की मांग की थी। लेकिन अब वर्ल्ड बैंक ने साफ कर दिया है कि वह इस विवाद में कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं कर सकता। बैंक ने दोनों देशों से सीधे संवाद के ज़रिये समाधान निकालने की सलाह दी है।
पाकिस्तान को कूटनीतिक झटका
वर्ल्ड बैंक के इस फैसले से पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही रणनीति को बड़ा झटका लगा है। पाकिस्तान की उम्मीद थी कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के ज़रिये वह भारत को झुकाने में सफल होगा, लेकिन अब उसे अकेले ही इस विवाद से निपटना पड़ेगा।
भारत का सधी हुई चुप्पी
भारत सरकार ने इस मुद्दे पर कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की, लेकिन सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह वर्ल्ड बैंक का रुख भारत की निष्पक्षता और वैधानिक अधिकारों की पुष्टि करता है। भारत की ओर से पहले ही कहा गया था कि वह सिंधु जल संधि की सभी शर्तों का पालन कर रहा है।
ऑपरेशन ‘सिंदूर’ क्या है?
सूत्रों के मुताबिक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की उस नीति का कोडनेम है जिसके तहत सिंधु जल संधि के दायरे में रहते हुए पाकिस्तान को पानी की राजनीति में रणनीतिक बढ़त से वंचित किया जाए। इसका मकसद है:
- भारत के जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग
- पाकिस्तान की निर्भरता को कमज़ोर करना
- अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की छवि को बेनकाब करना
जल विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ल्ड बैंक का यह फैसला “टर्निंग पॉइंट” हो सकता है। इससे न केवल भारत को परियोजनाओं पर आगे बढ़ने की हरी झंडी मिलती है, बल्कि पाकिस्तान की “जल कूटनीति” भी लगभग फेल हो गई है।