हर साल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का पर्व बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व खासकर सुहागन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, जिसमें वे अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। इस दिन व्रत रखा जाता है, पूजा की जाती है और खासतौर पर हरे रंग के वस्त्र, चूड़ियाँ, मेहंदी और श्रृंगार का उपयोग किया जाता है।
हरे रंग का महत्व क्यों है हरियाली तीज पर?
- प्रकृति और हरियाली का प्रतीक:
यह पर्व मानसून के मौसम में आता है जब प्रकृति हरे-भरे स्वरूप में होती है। हरा रंग प्रकृति, जीवन, उर्वरता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। - सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक:
भारतीय संस्कृति में हरा रंग सौभाग्य, शांति और समृद्धि का संकेत देता है। यही कारण है कि सुहागन स्त्रियाँ इस दिन हरे रंग की साड़ी, चूड़ियाँ और बिंदी पहनती हैं। - पारंपरिक मान्यता:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरियाली तीज पर माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए घोर तपस्या की थी, और उनका यह तप सावन के मौसम में ही पूरा हुआ था। अतः यह पर्व शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है, और हरा रंग पार्वती की कृपा को आकर्षित करता है।
हरियाली तीज के दिन की जाने वाली परंपराएं:
- महिलाएं उपवास रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।
- मेहंदी रचाई जाती है, जो प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।
- झूले पर झूलने की परंपरा होती है, लोकगीत गाए जाते हैं और सामूहिक उत्सव का आयोजन होता है।