बेंगलुरु की भगदड़ अब सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि 11 परिवारों की जिंदगी का ऐसा घाव बन गई है जो कभी नहीं भरेगा। जहां एक ओर स्टेडियम में जीत का जश्न मना रहे खिलाड़ी चमकते चेहरों के साथ मंच से उतर गए, वहीं राजनीतिक नेता भी कैमरे में क्रेडिट लेती तस्वीरें देकर रवाना हो गए।
लेकिन जो पीछे छूट गया, वो था मासूमों की चीख-पुकार, बिखरे हुए जूते-चप्पल और दर्द में डूबे 11 परिवार – जिन्होंने अपने अपनों को हमेशा के लिए खो दिया।
इस भगदड़ में जिनकी जानें गईं, वे सिर्फ संख्या नहीं, किसी का बेटा-बेटी, मां-पिता या जीवनसाथी थे। जश्न के नाम पर की गई लापरवाही अब सवालों के घेरे में है। प्रशासन की नाकामी और भीड़ नियंत्रण में भारी चूक ने इस आयोजन को मातम में बदल दिया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां न तो पर्याप्त सुरक्षा थी और न ही आपातकालीन सुविधा। हादसे के बाद प्रशासनिक जिम्मेदारियां एक-दूसरे पर डाली जा रही हैं, लेकिन जिन घरों के चिराग बुझ गए, उनका दुख कोई साझा करने नहीं आया।
अब 11 घरों में सन्नाटा पसरा है, जहां पहले हंसी-खुशी होती थी, अब केवल आंसू हैं और दीवारों पर टंगी तस्वीरें।