स्कूल में लोग मुझे बहुत ज्यादा परेशान करते थे क्योंकि मेरा हावभाव लड़की जैसा था। उस समय मुझे छुपने के लिए एक जगह चाहिए थी और मेरे लिए वह जगह लाइब्रेरी थी।”
बचपन में लाइब्रेरी के पीछे छुपने वाली ऋतूपूर्णा नेओग को किताबों से ऐसा प्यार हुआ कि आज वह गांव-गांव में जाकर फ्री लाइब्रेरी बना रही हैं ताकि शिक्षा के दम पर भेद-भाव को मिटाया जा सके। असम की ऋतूपूर्णा का बचपन किसी आम बच्चे जैसा ही सुखद था लेकिन किशोर अवस्था आते-आते उन्हें अपने लड़कियों जैसे हाव-भाव के लिए स्कूल में कई ताने सुनने पड़ते थे।
यह दौर मुश्किल जरूर था लेकिन शिक्षा की ताकत और उनके माता-पिता के साथ ने उन्हें कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। वह शिक्षा की ताकत तभी समझ गई थीं, शिक्षा की इस ताकत को हर एक इंसान तक पहुंचाने के लिए उन्होंने गांव में फ्री लाइब्रेरी बनाने का सपना देखा।