जहां आज भी समाज में महिलाओं के लिए कई तरह की बंदिशें हैं, वहीं टीकमगढ़ की एक बहादुर बुंदेली महिला ने इन बेड़ियों को तोड़ते हुए मिसाल कायम की है। पति की मौत के बाद जब घर चलाने का सवाल उठा, तब इस महिला ने रेलवे स्टेशन पर कुली का काम अपनाया वो भी बिना झिझक और संकोच के।
संध्या अपने इस नाम के मायने को मात देने वाली बुंदेलखंड की एक महिला। जिक्र सिर्फ इसलिए कि घर-परिवार और समाज के लिए वह नया सवेरा बनी हुई है। वह कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली नंबर-36 के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है और रेलवे के लिए भी कुछ खास है।
महिला सशक्तीकरण की बात आते ही उसका नाम लिया जाता है। वह अपना पूरा नाम संध्या मारावी बताती है। बांह पर पहने पीतल के कुली नंबर-36 के बिल्ले को भी दिखाती है मानो नाम और काम के 36 के आंकड़े को समझा रही हो। 65 पुरुष कुलियों के बीच वह अकेली महिला कुली है।
क्या है कहानी?
पति के असमय निधन के बाद घर में दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो गया। बच्चों की पढ़ाई और परिवार की जिम्मेदारी संभालने के लिए उन्होंने चुना कुली का पेशा, जो आमतौर पर पुरुषों से जुड़ा माना जाता है। लेकिन उन्होंने साबित किया कि मेहनत करने वाले के लिए लिंग नहीं, लगन मायने रखती है। “काम छोटा नहीं होता। लोगों की सोच और संकोच छोटा होता है। मैं अपने बच्चों का पेट पाल रही हूं और यही मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है।”
संघर्ष और समाज की सोच
कई लोगों ने शुरुआत में ताने मारे, लेकिन अब वही लोग उनके जज्बे को सलाम करते हैं। ये महिला आज न केवल कुली का काम कर रही है, बल्कि दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को भी प्रेरणा दे रही है।