यूनिसेफ (UNICEF) की हालिया रिपोर्ट ‘फीडिंग प्रॉफिट: हाउ फूड एनवायरनमेंट्स आर फेलिंग चिल्ड्रन’ ने वैश्विक बाल स्वास्थ्य को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। पहली बार, दुनिया में दुबले-पतले (underweight) बच्चों की तुलना में मोटे (obese) बच्चों की संख्या अधिक हो गई है। यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जहां मोटापे की दर तेजी से बढ़ रही है।
प्रमुख निष्कर्ष:
- संख्या में बड़ा बदलाव: रिपोर्ट के अनुसार, 5 से 19 साल के आयु वर्ग में 9.4% बच्चे अब मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि 9.2% बच्चे कम वजन के हैं। यह आंकड़ा साल 2000 के मुकाबले एक बड़ा बदलाव है, जब सिर्फ 3% बच्चे ही मोटे थे, जबकि 13% कम वजन के थे।
- उच्च जोखिम वाले क्षेत्र: यह समस्या दुनिया के सभी क्षेत्रों में देखी जा रही है, लेकिन प्रशांत द्वीप समूह (Pacific Island countries) में स्थिति सबसे गंभीर है, जहां पारंपरिक आहार की जगह आयातित और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड ने ले ली है। इनमें नियू (Niue) में 38% और कुक आइलैंड्स (Cook Islands) में 37% बच्चे मोटापे का शिकार हैं।
- अन्य प्रभावित देश: अमेरिका और चिली जैसे उच्च आय वाले देशों में भी मोटापे की दर बहुत अधिक है, जहां क्रमश: 21% और 27% बच्चे प्रभावित हैं। भारत और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में अभी भी कम वजन वाले बच्चों की संख्या अधिक है, लेकिन यहां भी मोटापे की दर तेजी से बढ़ रही है, जिसे ‘दोहरा कुपोषण’ (Double Burden of Malnutrition) कहा जाता है।
मोटापे का कारण और इसके दीर्घकालिक खतरे
यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि इस संकट का मुख्य कारण बच्चों के लिए अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों का बढ़ता चलन है।
- अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड: ये वे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें चीनी, नमक, और अस्वस्थ वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है। ये सस्ते, आसानी से उपलब्ध और आक्रामक मार्केटिंग के कारण बच्चों को लुभाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 75% बच्चों ने पिछले सप्ताह फास्ट फूड या मीठे पेय पदार्थों के विज्ञापन देखे।
- शारीरिक गतिविधि की कमी: डिजिटल उपकरणों पर बढ़ता समय और खेलने-कूदने की गतिविधियों में कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है।
- खतरे: बचपन का मोटापा सिर्फ वजन का मुद्दा नहीं है। यह बच्चों को टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और कुछ प्रकार के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के जोखिम में डालता है। यह उनके मानसिक और संज्ञानात्मक विकास को भी प्रभावित कर सकता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा, “जब हम कुपोषण की बात करते हैं, तो अब हम केवल कम वजन वाले बच्चों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। मोटापा एक बढ़ती हुई चिंता है जो बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को प्रभावित कर सकती है। अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स तेजी से फल, सब्जियां और प्रोटीन की जगह ले रहे हैं।”
रिपोर्ट ने सरकारों और नीति निर्माताओं से इस समस्या को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का आग्रह किया है, जिसमें अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स पर टैक्स लगाना और बच्चों के लिए हानिकारक विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाना शामिल है।