Homeसक्सेस स्टोरीSuccess Story: डिलीवरी बॉय से बने डिप्टी कलेक्टर, सूरज यादव ने JPSC में हासिल की 110वीं रैंक।

Success Story: डिलीवरी बॉय से बने डिप्टी कलेक्टर, सूरज यादव ने JPSC में हासिल की 110वीं रैंक।

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कहते हैं मेहनत और लगन से कुछ भी नामुमकिन नहीं होता। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं सूरज यादव, जिन्होंने झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की परीक्षा में 110वीं रैंक हासिल कर डिप्टी कलेक्टर बनने का गौरव पाया है। झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) ने परीक्षा के नतीजे 25 जुलाई को घोषित हो चुके हैं. इसमें गिरिडीह के सूरज यादव ने सफलता हासिल कर एक मिसाल कायम की है. अब वह डिप्टी कलेक्टर बनेंगे. सूरज यादव ने अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए स्विगी में डिलीवरी बॉय का काम किया और और रैपिडो बाइक भी चलाई. सूरज की कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो जीवन में कठिन परिस्थितियों के कारण हार मान लेते हैं।

झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) ने संयुक्त सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2023 के परिणाम 25 जुलाई को घोषित कर दिए. यह घोषणा 10 महीने की देरी के बाद की गई है. मुख्य परीक्षा 22 से 24 जून, 2024 तक हुई थी. मेन्स में सफर कैंडिडेट इंटरव्यू में शामिल हुए थे. सूरज यादव का सफर बेहद संघर्षों से भरा रहा। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ डिलीवरी बॉय का काम करना पड़ा। दिन में कड़ी मेहनत और रात में पढ़ाई—इसी संतुलन के दम पर उन्होंने यह बड़ी उपलब्धि हासिल की।

पिता हैं मजदूर

सूरज यादव एक साधारण परिवार से आते हैं. उनके पिता एक राजमिस्त्री हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इन परेशानियों के बावजूद उन्होंने सरकारी अफसर बनने का सपना नहीं छोड़ा. उन्होंने रांची में रहकर तैयारी शुरू की. जब घर से पैसे मिलना बंद हो गए तो पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए उन्होंने डिलीवरी बॉय का किया।

दोस्तों की मदद से खरीदी पुरानी बाइक

सूरज के पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे. इसलिए उन्होंने स्विगी और रैपिडो में डिलीवरी बॉय का काम शुरू किया. उनके पास कोई बाइक नहीं थी. ऐसे में उनके दोस्तों राजेश नायक और संदीप मंडल ने मदद की. इन दोनों ने स्कॉलरशिप के पैसों से सूरज को एक पुरानी बाइक खरीदने में मदद की. इस बाइक से सूरज ने दिन में 5 घंटे डिलीवरी का काम किया और बाकी समय अपनी पढ़ाई को दिया।

पत्नी ने दिया सूरज ने जला दी सफलता की रोशन

उनकी सफलता में उनके परिवार का भी बहुत बड़ा योगदान है. उनके माता-पिता ने हमेशा उनका हौसला बढ़ाया. बहन ने घर के काम संभाले, ताकि सूरज बिना किसी चिंता के पढ़ाई पर ध्यान दे सकें. उनकी पत्नी ने भी हर कदम पर उनका साथ दिया और लगातार उन्हें प्रेरित करती रहीं. यह परिवार का सामूहिक संघर्ष और सहयोग ही था, जिसने सूरज को इस मुकाम तक पहुंचाया.

उन्होंने बताया कि डिलीवरी बॉय की नौकरी से जो भी पैसे मिलते थे, उसी से किताबें और कोचिंग का खर्च उठाया। कठिनाइयों के बावजूद कभी हार नहीं मानी और हमेशा लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखा। आज सूरज की सफलता न केवल उनके परिवार बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा है। उनकी कहानी यह साबित करती है कि हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, अगर हौसले बुलंद हों तो सपने जरूर पूरे होते हैं।

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