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Trauma Recovery: सद्गुरु ने बताया ट्रॉमा से बाहर निकलने का आसान तरीका, जानें क्या न करें गलती

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ट्रॉमा (Trauma) का असर व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक सेहत दोनों पर गहरा पड़ता है. यह न केवल सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करता है बल्कि लंबे समय तक स्ट्रेस और हेल्थ प्रॉब्लम्स का कारण भी बन सकता है. लेकिन क्या ट्रॉमा से बाहर निकला जा सकता है? आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु का कहना है कि इसका समाधान व्यक्ति के अपने हाथ में है. सद्गुरु ने अपने हालिया इंस्टाग्राम वीडियो में बताया कि ट्रॉमा से बाहर आने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले अपने अनुभवों से लगाव (Attachment) छोड़ना होगा. उनके अनुसार, बार-बार उस घटना को दोहराना या अपने दिमाग में उसे जीवित रखना सबसे बड़ी गलती है.

ट्रॉमा से बाहर निकलने का आसान तरीका

सद्गुरु ने वीडियो में कहा कि आपने अपने जीवन में जो कुछ भी झेला है. कोई दूसरा मेरे साथ क्या करेगा, यह मेरे हाथ में नहीं है. लेकिन मैं अपने साथ जो करता हूं वह सौ प्रतिशत मेरे हाथ में है. कोई भी आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता है. कोई व्यक्ति आपको शारीरिक कष्ट पहुंचा सकते हैं. वह आपका दुरुपयोग कर सकते हैं. लेकिन ट्रॉमा आपको खुद के कारण होता है, यह बात आपको समझने की जरूरत है. अगर कोई एक कंकड़ फेंकता है, तो आप उस हिमस्खलन का कारण बन जाता है यानी कि पहाड़ या ढलान से बर्फ का तेजी से गिरने लगती है और अगर कोई उसके भार के नीचे मर जाता है और आपको लगता है कि वह पत्थर फेंकने वाली व्यक्ति इसका कारण हैं, लेकिन नहीं उन्होंने आप पर सिर्फ एक ही कंकड़ फेंका है.

अब क्या आप एक पत्थर को सिर्फ एक पत्थर के रूप में छोड़ना चाहते हैं या इसे एक हिमस्खलन में बदलना चाहते हैं जो आपको मार सकता है? यह बात आप पर निर्भर करती है. चाहे दुनिया हमारे साथ कुछ भी करें, हम अपने लिए सबसे अच्छा सोचेंगे और करेंगे. यदि आपको चुनाव करने के लिए बैलेंस और कॉन्शियसनेस मिलती है, तो आप देखेंगे कि जिस पर दया करने के बारे में सोच रहे हैं, उसी व्यक्ति ने आपके ऊपर पत्थर फेंका, क्योंकि मूर्ख जीवन के मूल को नहीं समझता है.

उन्होंने कैप्शन में लिखा कि लाइफ में आपके सामने जो कुछ आता है, यदि आप उससे छुटकारा पाना और उस का सामना करना सीख जाते हैं, तो आप इसे आपका विकास हो सकता है. साथ ही मैच्योरिटी और खुशहाली का आधार बना सकते हैं.

उन्होंने कहा – “बीता हुआ समय खत्म हो चुका है, लेकिन आप उसे अपने भीतर जिंदा रखते हैं. यही सबसे बड़ा कारण है कि ट्रॉमा आपकी जिंदगी पर हावी हो जाता है. अगर आप अपने मन को वर्तमान में टिकाना सीख जाएं, तो ट्रॉमा का असर धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा।”

सद्गुरु ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रॉमा से जूझते समय लोगों को स्वयं को दोषी मानने या दूसरों पर लगातार आरोप लगाने से बचना चाहिए. इसके बजाय, उन्हें अपने भीतर संतुलन और शांति लाने के प्रयास करने चाहिए. विशेषज्ञ भी मानते हैं कि मेडिटेशन, योग और पॉजिटिव सोच ट्रॉमा से बाहर आने में बड़ी मदद कर सकते हैं।

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