कांग्रेस सांसद राहुल गांधी इन दिनों केंद्र सरकार पर सीधे और तीखे हमले कर रहे हैं। SIR और कथित ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर राहुल ने सरकार को घेरते हुए इसे लोकतंत्र के खिलाफ साजिश बताया है। उनका कहना है कि देश की चुनावी प्रक्रिया पर संकट गहराता जा रहा है और इसे रोकने के लिए जनता को सड़कों पर उतरना होगा।
राहुल ने जनता के सामने ऐसा मुद्दा उठाया है जो सीधे लोकतांत्रिक ढांचे को हिट करता है। उन्होंने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी ने वोट चोरी कर तीसरी बार पीएम का पद हासिल किया। कांग्रेस सांसद का कहना है कि बीजेपी और चुनाव आयोग की मिलीभगत से ये काम हुआ है। राहुल के आरोपों में कितना दम है ये साबित करने के लिए चुनाव आयोग ने उनसे सबूत मांगा है।
इन आरोपों को लेकर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने विरोध-प्रदर्शन किए, रैलियां निकालीं और प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए सरकार पर निशाना साधा। राहुल गांधी का आक्रामक रुख विपक्ष में नई ऊर्जा लेकर आया है, लेकिन सवाल यह है कि इतने बड़े मुद्दे के बावजूद जनता का समर्थन उम्मीद के मुताबिक क्यों नहीं मिल रहा?
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इसके पीछे कई वजहें हैं—जनता के बीच मुद्दे की पूरी जानकारी का अभाव, विपक्ष की ओर से जमीनी स्तर पर प्रभावी अभियान की कमी, और लोगों का ध्यान महंगाई, बेरोजगारी और रोजमर्रा की समस्याओं पर ज्यादा केंद्रित होना। इसके अलावा, पिछले आंदोलनों में ठोस नतीजे न आने से भी आम लोग इस तरह के विरोध में शामिल होने से बचते हैं।
फिलहाल राहुल गांधी इस मुद्दे को लेकर संसद से लेकर सड़क तक सक्रिय हैं, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे इसे लोगों के दिलों और दिमाग में प्राथमिक मुद्दा कैसे बनाएं। आने वाले समय में यह साफ होगा कि यह आंदोलन जनसमर्थन जुटाने में कितना सफल हो पाता है। राहुल गांधी इस मुद्दे को संसद से लेकर सड़क तक जोर-शोर से उठाते हुए विपक्षी गठबंधन को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या उनकी अपील आम लोगों तक असरदार तरीके से पहुंच पाती है या नहीं।