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Chhattisgarh Culture: यहां शादी से पहले आत्माओं को दिया जाता है न्योता, नहीं किया इनवाइट तो हो सकती है अनहोनी!

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बचपन में आपने अपनी नानी-दादी से भूत-प्रेत और आत्माओं के कहानी सुनी होगी. किसी सुनसान जगह पर कोई आत्मा भटकती है. इसके साथ ही कई बार भूत भगाने के लिए हवन-कीर्तन करते हुए भी आपने देखा होगा. लेकिन क्या कभी आत्माओं की पूजा होती देखी है?

भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां हर संस्कृति की अपनी अनोखी परंपराएं हैं। ऐसी ही एक चौंकाने वाली लेकिन पवित्र परंपरा निभाई जाती है छत्तीसगढ़ के बस्तर और अबूझमाड़ जैसे आदिवासी इलाकों में, जहां शादी से पहले आत्माओं को न्योता दिया जाता है। यहां के आदिवासी समाज के लोग मानते हैं कि पूर्वजों की आत्माएं आज भी उनके बीच रहती हैं, और उनका आशीर्वाद जीवन के हर शुभ कार्य के लिए बेहद ज़रूरी होता है।

क्यों दिया जाता है आत्माओं को न्योता?

इन इलाकों में यह मान्यता है कि यदि शादी से पहले आत्माओं को नहीं बुलाया गया तो वे नाराज़ हो सकती हैं और घर-परिवार पर विपत्ति आ सकती है। इसलिए विवाह की रस्में शुरू होने से पहले:

  • गांव के देव स्थान में पूजा की जाती है
  • पूर्वजों की आत्मा को बुलाकर विशेष विधि से न्योता दिया जाता है
  • घर के बुजुर्ग और पुजारी मिलकर ये पूरा आयोजन करते हैं

आत्मा की उपस्थिति होती है महसूस

स्थानीय लोग कहते हैं कि पूर्वजों की आत्माएं शादी में शामिल होती हैं और परिवार को बुरी आत्माओं से बचाती हैं। यही वजह है कि ये परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी बड़ी श्रद्धा से निभाई जाती है।

आधुनिकता के बावजूद कायम है आस्था

बदलते समय में जहां लोग रीति-रिवाज़ों से दूर हो रहे हैं, वहीं बस्तर और अबूझमाड़ जैसे क्षेत्रों में परंपरा और आस्था आज भी गहराई से जुड़ी है। यहां के युवा भी इस परंपरा को गर्व से निभाते हैं।

न बुलाने पर मानी जाती है अनहोनी का खतरा

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, अगर आत्माओं को भूलवश भी नहीं बुलाया गया, तो विवाह के बाद दंपति को बीमारी, विवाद या दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए यह परंपरा डर से नहीं, श्रद्धा और सम्मान से निभाई जाती है।

बस्तर के अबूझमाड़ इलाकों में आदिवासी समुदाय के लोग आत्माओं को घर देते हैं और आत्माओं की पूजा करते हैं। वह आत्माओं को न्योता देते हैं और परिवार की खुशहाली के लिए पूजा करते हैं। अबूझमाड़ के गांवों में आत्माओं को घर देने की परंपरा सालों से चलती आ रही है। इस गांव के लोग पीतर या पितृपक्ष को नहीं मानते। उनका कहना है कि वह अपने पूर्वजों की आत्माओं को आत्माओं के घर में रखकर उनकी पूजा करते हैं। यहां हांडियों में पूर्वजों की आत्माओं को रखा जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

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