घूमना आखिरकार किसे पसंद नही है। भारत में अतिथि देवो भवः यानी अतिथि को भगवान का रूप माना जाता है और यहां पर शुरुआत से ही अतिथियों का स्वागत करने की परंपरा रही है. गुजरते वक्त के साथ लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे और फिर यह दायरा बढ़ते हुए विदेश यात्रा में बदल गया. किसी भी देश या किसी भी राज्य में अतिथियों यानी सैलानियों का आना वहां की आय का बड़ा स्रोत माना जाता है. सरकारें सैलानियों को लुभाने के लिए ढेरों योजनाएं भी चलाती हैं, लेकिन इसके उलट मेजबान लोगों को अतिथियों का आना रास नहीं आ रहा है. आखिर क्यों?
कोरोना के बाद दुनियाभर में पर्यटन गतिविधियाँ तेज़ी से बढ़ रही हैं, लेकिन इसका असर स्थानीय लोगों की ज़िंदगी पर अब नकारात्मक रूप में सामने आने लगा है। यूरोप से लेकर अमेरिका तक, कई प्रमुख पर्यटन स्थलों पर अब स्थानीय लोगों में गुस्सा पनप रहा है — और ये गुस्सा अब सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है।
कौन-कौन से शहर हैं प्रभावित?
- स्पेन:
बार्सिलोना और मैड्रिड में स्थानीय लोग ओवरटूरिज्म के खिलाफ सड़कों पर उतर चुके हैं। वे महंगाई, भीड़, शांति भंग और बढ़ते किरायों से परेशान हैं। - इटली:
रोम, वेनिस और फ्लोरेंस जैसे शहरों में न केवल आम टूरिस्ट्स बल्कि हाई-प्रोफाइल इवेंट्स जैसे जेफ बेजोस की शादी का भी विरोध हुआ। इटली के कई शहरों में “No Tourists” जैसे पोस्टर दिखने लगे हैं। - फ्रांस:
पेरिस में ओलंपिक गेम्स 2024 की तैयारी के बीच, टूरिज्म को लेकर सामाजिक असंतुलन पर बहस छिड़ी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि शहर अब सिर्फ विज़िटर्स के लिए रह गया है, निवासियों के लिए नहीं। - मैक्सिको:
मैक्सिको सिटी में डिजिटल नोमाड्स और अमेरिकी पर्यटकों की भीड़ ने स्थानीय आवासीय इलाकों को प्रभावित किया है। किराए बढ़ने, सुविधाओं पर दबाव और संस्कृति में हस्तक्षेप स्थानीय जनता को परेशान कर रहे हैं।
गुस्से की वजह क्या है?
- ओवरटूरिज्म:
पर्यटन की अधिकता के कारण ट्रैफिक, प्रदूषण और संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। - गिरती जीवन गुणवत्ता:
एयरबीएनबी जैसे प्लेटफॉर्म के कारण मकानों का किराया स्थानीय लोगों के लिए असहनीय हो गया है। - सांस्कृतिक असंतुलन:
स्थानीय संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था में बाहरी प्रभावों के कारण परिवर्तन और विरोधाभास देखने को मिल रहे हैं। - आर्थिक असमानता:
पर्यटकों से होने वाली कमाई का लाभ केवल बड़े बिज़नेस या बाहरी निवेशकों को मिल रहा है, जबकि स्थानीय लोगों को महंगाई और असुविधा झेलनी पड़ रही है।
स्थानीय लोगों की मांगें
- टूरिस्ट्स की संख्या पर सीमा तय की जाए
- स्थानीय हाउसिंग को सुरक्षित किया जाए
- सांस्कृतिक स्थलों पर नियंत्रण और शुल्क लागू हो
- बड़े इवेंट्स से पहले स्थानीय लोगों से राय ली जाए
जहां एक ओर टूरिज्म से अर्थव्यवस्था को फायदा होता है, वहीं दूसरी ओर अगर इसे संतुलन के साथ न संभाला जाए, तो यही पर्यटन स्थानीय निवासियों के लिए अभिशाप बन सकता है। “अतिथि देवो भवः” की भावना को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि पर्यटन के साथ-साथ स्थानीय समाज के हितों का भी पूरा ध्यान रखा जाए। पर्यटन सिर्फ घूमने की बात नहीं, ज़िम्मेदारी और संतुलन की भी मांग करता है।