जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की तैयारियां पूरे जोर-शोर से चल रही हैं और श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर है। इस बीच एक बार फिर जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी कई रहस्यमयी परंपराएं और मान्यताएं चर्चा में आ गई हैं। इन सब में सबसे रोचक और चौंकाने वाला रहस्य है – मंदिर की चोटी पर रोज़ ध्वजा (पताका) बदलने की परंपरा।
रोज़ क्यों बदली जाती है ध्वजा?
पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर की चोटी पर हर दिन विशेष ध्वज लगाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘पतित पावन ध्वज’ कहा जाता है। यह सदियों पुरानी परंपरा है और इसका पालन बिना किसी चूक के हर दिन किया जाता है। ध्वजा बदलने की जिम्मेदारी महाराणा परिवार के सदस्यों की होती है, जो बिना किसी सुरक्षा उपकरण के, 214 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर चढ़कर यह काम करते हैं। यह परंपरा 365 दिन, हर हाल में निभाई जाती है – चाहे तेज़ आंधी हो या बारिश।
एक दिन भी ना हो ये परंपरा पूरी, तो?
मान्यता है कि अगर किसी दिन ध्वजा नहीं बदली गई या यह परंपरा टूट गई, तो इसे शगुन की जगह अपशगुन माना जाएगा। लोकविश्वास है कि ऐसा होना पुरी या देश के लिए संकट का संकेत हो सकता है। इसी कारण हर हाल में इसे अखंड परंपरा की तरह निभाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि एक बार भी चूक हुई तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो सकता है।
क्या है ध्वज से जुड़ी विशेष बातें?
- ध्वजा हमेशा भगवान जगन्नाथ के सामने से हवा के विपरीत दिशा में लहराता है, जो आज तक विज्ञान भी नहीं समझ सका।
- यह एक पवित्र प्रतीक है, जिसे देखने मात्र से ही भक्तों को पुण्य मिलता है।
- ध्वज पर ‘सुदर्शन चक्र’ और ‘नारियल का पत्ता’ लगाया जाता है, जो देवता की शक्ति का प्रतीक है।
जगन्नाथ मंदिर की ध्वज परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का गहरा प्रतीक है। यह आज भी दिखाता है कि कैसे आस्था और अनुशासन एक समाज को जोड़ कर रखते हैं।