चर्चित चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने बिहार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, बिहार की स्थिति किसी से छिपी नहीं है, यहां के लोग दशकों से पलायन को मजबूर हैं। यह सिर्फ विकास की असफल नीतियों का नतीजा है।” उनका यह बयान राज्य में उद्योगों की कमी और रोजगार के अवसरों की अनुपलब्धता को लेकर आया है, जो आगामी बिहार विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में बेहद अहम माना जा रहा है।
बिहार में क्यों हो रहा है पलायन?
प्रशांत किशोर का कहना है कि बिहार से लगातार हो रहा पलायन इस बात का संकेत है कि यहां मूलभूत सुविधाओं, शिक्षा और आजीविका के साधनों की भारी कमी है। “बिहार में केवल उद्योग लगाकर इस समस्या का हल नहीं निकलेगा। यहां पहले शिक्षा, स्वास्थ्य, और सेवा क्षेत्रों को मज़बूत करना होगा,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सिंगापुर, न्यूजीलैंड जैसे छोटे देशों में बड़े उद्योग नहीं हैं, लेकिन वे ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था से अपने लोगों को बेहतर जीवन दे रहे हैं।
उद्योग नहीं, शिक्षा है असली समाधान
किशोर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि:
- “अगर अडानी या अंबानी यहां एक फैक्ट्री भी लगा दें, तो क्या वह 13 करोड़ लोगों को रोजगार दे पाएंगे?”
- “बिहार को चाहिए ऐसा मॉडल, जिसमें हर परिवार को अपने स्तर पर काम करने का अवसर मिले। यह तभी संभव है जब शिक्षा और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा।”
उन्होंने “जन सुराज” अभियान के तहत अब तक 3000+ पंचायतों में जनसंवाद किए हैं, जिसमें उन्होंने देखा कि युवाओं को मजबूरी में दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ता है।
चुनावी रणनीति में शिक्षा पर जोर
प्रशांत किशोर की पार्टी ने यह घोषणा की है कि सत्ता में आने पर सरकार:
- सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाएगी।
- निजी स्कूलों की फीस सरकार खुद वहन करेगी, जब तक सरकारी स्कूल बेहतर नहीं हो जाते।
- हर पंचायत में स्किल ट्रेनिंग सेंटर खोले जाएंगे।
उनका चुनाव चिह्न “स्कूल बैग” भी इस एजेंडे को मजबूती देता है।
आलोचना भी तेज
हालांकि किशोर के इस बयान पर प्रतिक्रियाएं भी आई हैं।
- पूर्व Infosys CFO मोहंदास पई ने कहा, “बिहार को सर्विस इंडस्ट्री नहीं, लेबर-इंटेंसिव इंडस्ट्री की जरूरत है।”
- कई आर्थिक विशेषज्ञों ने किशोर की बात को “आदर्शवादी लेकिन व्यवहार में कठिन” करार दिया।
प्रशांत किशोर के इस बयान ने बिहार में विकास को लेकर नई बहस को जन्म दे दिया है। एक ओर जहां वे शिक्षा और सेवा क्षेत्र को प्राथमिकता देने की बात कर रहे हैं, वहीं विरोधी इसे अव्यावहारिक बता रहे हैं। बिहार की जनता तय करेगी कि राज्य को उद्योगों से तरक्की चाहिए या शिक्षा-आधारित नया रास्ता।
पलायन पर बातचीत
उन्होंने आगे बताया कि उद्योगों के लिए बिहार में आना क्यों लाभदायक हो सकता है। एक अन्य यूजर ने कहा कि वह प्रशांत किशोर के विचार से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मैं उनसे पूरी तरह सहमत नहीं हूं। उनका ध्यान दीर्घकालिक शिक्षा और सेवा पर है, तथा वे बिहार की औद्योगिकीकरण की तत्काल आवश्यकता को नजरअंदाज कर रहे हैं। बिहार सिंगापुर या नॉर्वे नहीं है, यह 1990 के दशक के तमिलनाडु के करीब है, तथा हमें समग्र विकास के लिए उसी मॉडल का अनुसरण करना चाहिए।
प्रशांत किशोर का बयान
एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में बड़े औद्योगिक पार्क नहीं बनाए जा सकते क्योंकि राज्य चारों ओर से जमीन से घिरा हुआ है और यहां जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि पहली प्राथमिकता बिहार की शिक्षा और सेवा क्षेत्र में सुधार और बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करना है। किशोर ने कहा कि मान लीजिए कि अडानी ने उद्योग लगाया या अंबानी ने राज्य में कारखाना लगाया, तो उससे कितने लोगों को श्रम मिलेगा? 10,000; 20,000; 50,000; 1 लाख; बिहार की आबादी लगभग 13 करोड़ है। भ्रम की स्थिति है। सभी नेता दिन में आएंगे और कहेंगे कि सरकार ने 5 लाख नौकरियां दी हैं।