ईरान और इजरायल के बीच हालिया संघर्ष के समाप्त होने के बाद, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने अपने पहले सार्वजनिक बयान में अमेरिका और इजरायल दोनों पर तीखा हमला बोला है। खामेनेई ने दावा किया कि ईरान ने इस संघर्ष में “जीत हासिल की” और अमेरिका को “मुंह तोड़ जवाब” दिया है।
क्या कहा खामेनेई ने?
गुरुवार को तेहरान में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए खामेनेई ने कहा: “इस युद्ध में हमने इजरायल को पीछे हटने पर मजबूर किया और अमेरिका के चेहरे पर जोरदार तमाचा मारा है।”
“अमेरिका ने इजरायल को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसकी कोई चाल काम नहीं आई। हमारे लोगों की एकता और हमारी सैन्य क्षमता ने यह साबित कर दिया कि ईरान अब किसी के आगे झुकने वाला देश नहीं रहा।”
खामेनेई का निशाना अमेरिका और इजरायल दोनों पर
- खामेनेई ने यह भी कहा कि अमेरिका ने युद्ध के दौरान राजनयिक दबाव, साइबर हमले और सीमा पार हस्तक्षेप के जरिए ईरान को कमजोर करने की कोशिश की।
- लेकिन ईरानी सेना और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने हर रणनीति को विफल कर दिया।
- उन्होंने कहा, “हमारा जवाब सिर्फ सीमा पर नहीं था, हमने अमेरिका की रणनीतिक गिनती ही बिगाड़ दी।”
ईरान-इजरायल युद्ध की पृष्ठभूमि
- मई 2025 की शुरुआत में ईरान और इजरायल के बीच सीधी सैन्य झड़पें शुरू हुई थीं।
- ड्रोन हमलों, मिसाइल हमलों और साइबर हमले दोनों देशों के बीच तीव्र तनाव का कारण बने।
- अमेरिका ने इजरायल को सैन्य सहायता प्रदान की थी, लेकिन उसने सीधे तौर पर युद्ध में हस्तक्षेप नहीं किया।
- करीब 3 सप्ताह बाद युद्धविराम की घोषणा हुई, जिसके पीछे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका अहम रही।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- अमेरिका ने अभी तक खामेनेई के बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
- संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है और शांति वार्ता की वकालत की है।
विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि खामेनेई का यह बयान आंतरिक रूप से ईरानी जनता को एकजुट रखने और बाहरी दुनिया को चेतावनी देने का प्रयास है। “यह भाषण सैन्य जीत से ज्यादा राजनीतिक और वैचारिक जीत का दावा करता है,” — मध्य पूर्व मामलों के जानकार, डॉ. सैयद नासिर।
ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई के इस बयान ने एक बार फिर पश्चिम एशिया की राजनीति में कूटनीतिक तनाव बढ़ा दिया है। युद्धविराम के बाद यह भाषण आने वाले दिनों में अमेरिका और ईरान के रिश्तों को और कठिन बना सकता है।