पुरी (ओडिशा): जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का पावन पर्व आस्था, भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम है। हर साल करोड़ों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा में शामिल होने के लिए पुरी पहुंचते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर क्यों जाते हैं?
क्या है रथ यात्रा का भावार्थ?
जगन्नाथ रथ यात्रा दरअसल भगवान जगन्नाथ की ननिहाल यात्रा है। वे अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के साथ पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक रथ यात्रा करते हैं। गुंडिचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर माना जाता है।
मौसी के घर जाने की धार्मिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण (जगन्नाथ स्वरूप) अपनी बहन सुभद्रा के साथ कुछ दिन के लिए मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) ठहरने गए थे। तभी से यह परंपरा बनी कि हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान अपने भक्तों के बीच रथ पर सवार होकर मौसी के घर जाते हैं और वहां 9 दिनों तक विश्राम करते हैं।
रथ यात्रा की भव्यता
- भगवान के लिए तीन विशाल रथ बनाए जाते हैं — नंदिघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र) और पद्मध्वज (सुभद्रा)।
- लाखों श्रद्धालु भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य पाते हैं।
- रथ यात्रा के दौरान पुरी नगरी में भक्ति और उल्लास का माहौल रहता है।
यात्रा का समापन
9 दिनों के प्रवास के बाद भगवान जगन्नाथ वापस श्रीमंदिर लौटते हैं, जिसे ‘बहुदा यात्रा’ कहा जाता है। रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह जीवन में रिश्तों की गहराई और सेवा भावना का भी प्रतीक है। भगवान का हर साल अपनी मौसी के घर जाना हमें यह भी सिखाता है कि संस्कारों और संबंधों की डोर कभी नहीं टूटती।