देश की न्याय व्यवस्था और समाजिक संवेदनाओं को झकझोर देने वाला ज्योति केस एक नई पीड़ा के साथ सामने आया है। पीड़िता के पिता की आँखों से बहते आँसू और डगमगाती आवाज़ ने पूरे देश को भावुक कर दिया है।
उन्होंने मीडिया के सामने बयान देते हुए कहा:
“मैं चाहूं तो भी… अब ज्योति का केस नहीं लड़ पाऊंगा। यह शब्द सिर्फ हार की नहीं, बल्कि एक असहनीय सामाजिक, मानसिक और आर्थिक दबाव की कहानी कह रहे थे।
आखिर क्या है वो वजह?
पिता ने रोते हुए कहा: “हमने सब कुछ खो दिया, अब न पैसा है, न ताकत, न सहारा। कोर्ट के चक्कर काटते-काटते कर्ज में डूब गए हैं। रिश्तेदार मुंह मोड़ चुके हैं। वकीलों की फीस देने को घर बेचने की नौबत है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं और अब परिवार की सुरक्षा को लेकर वह बेहद डरे हुए हैं।
कोर्ट में अकेली पड़ती ‘ज्योति’
इस केस में जहां देश की उम्मीदें कोर्ट से इंसाफ की मांग कर रही थीं, वहीं पीड़िता के पिता के इस बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:
- क्या गरीब के लिए इंसाफ अब भी एक सपना है?
- क्या पीड़ित परिवार की सुरक्षा और मदद की जिम्मेदारी सिर्फ मीडिया कवरेज तक ही सीमित है?
- क्या ज्योति की लड़ाई अब अधूरी रह जाएगी?
सोशल मीडिया पर उबाल
जैसे ही यह वीडियो क्लिप वायरल हुई, सोशल मीडिया पर #JusticeForJyoti और #StandWithJyotiFather ट्रेंड करने लगा। लोग न्याय प्रणाली और सरकार से सवाल कर रहे हैं – “कब तक पीड़ित की आवाज़ यूं ही दबाई जाती रहेगी?”
सरकार और प्रशासन पर सवाल
अब तक न तो प्रशासन की ओर से कोई ठोस मदद का आश्वासन आया है और न ही राज्य सरकार की ओर से कोई बयान जारी किया गया है। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जिन मामलों में मीडिया हाईलाइट नहीं करता, क्या वहाँ न्याय सिर्फ कागजों में रह जाता है?