जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंधों में भारी तनाव उत्पन्न हो गया है। इस हमले में 26 नागरिकों की जान गई, जिनमें अधिकांश हिंदू पर्यटक थे। हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ ने ली है, जिसे लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी माना जाता है।
भारत सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया
हमले के तुरंत बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए। इनमें पाकिस्तानी नागरिकों के सभी वीज़ा रद्द करना, उन्हें देश छोड़ने का आदेश देना, अटारी-वाघा सीमा को बंद करना, और सिंधु जल संधि को निलंबित करना शामिल है । इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान के सैन्य, नौसेना और वायुसेना सलाहकारों को ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ घोषित कर देश छोड़ने का आदेश दिया गया है ।
सीमा पर मानवीय संकट
24 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच, 786 पाकिस्तानी नागरिकों ने अटारी-वाघा सीमा के माध्यम से भारत छोड़ा है। वहीं, इसी अवधि में 1,376 भारतीय नागरिक पाकिस्तान से लौटे हैं । इस अचानक हुई वापसी ने कई परिवारों को विभाजित कर दिया है, विशेषकर वे पाकिस्तानी महिलाएं जो वर्षों से भारत में अपने भारतीय पतियों और बच्चों के साथ रह रही थीं। अब उन्हें अपने परिवारों से अलग होकर पाकिस्तान लौटना पड़ा है, जिससे गहरा भावनात्मक संकट उत्पन्न हुआ है ।
क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
भारत के इन कदमों के जवाब में पाकिस्तान ने भी कड़े प्रतिवाद किए हैं, जैसे कि भारतीय उड़ानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करना, व्यापारिक संबंधों को निलंबित करना, और 1972 की शिमला समझौते को स्थगित करना । अमेरिका ने दोनों देशों से संयम बरतने और स्थिति को और न बिगाड़ने की अपील की है ।
पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने न केवल कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित किया है, बल्कि आम नागरिकों के जीवन को भी गहराई से प्रभावित किया है। सीमा पर उत्पन्न मानवीय संकट और दोनों देशों के बीच बढ़ती दुश्मनी ने क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं।