वक्फ अधिनियम बिल जबसे पास हुआ है, इसे लेकर आए दिन रोज़ कुछ न कुछ बवाल होते ही रहते हैं। हाल ही में इस मुद्दे को लेकर इस और बवाल शुरु हो गया है। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम 1995 को लेकर हो रही सुनवाई के दौरान मंगलवार यानी की 16 अप्रैल 2025 को एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण बहस देखने को मिली।
आपको बताते चले कि, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस कानून की पैरवी करते हुए मुस्लिम समाज की विरासत और परंपराओं का हवाला दिया, जिस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने तुरंत जवाब देते हुए हिन्दू समाज की सांस्कृतिक परंपराओं और अधिकारों की भी चर्चा कर दी।
कपिल सिब्बल की दलील
कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि वक्फ अधिनियम मुस्लिम समाज की एक ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य धार्मिक स्थलों और संपत्तियों की हिफाजत करना है। उन्होंने कहा कि, यह कानून मुस्लिम समाज की धार्मिक स्वतंत्रता और परंपराओं की रक्षा करता है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण प्राप्त है।
CJI का संतुलित जवाब
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सिब्बल की दलीलों को ध्यानपूर्वक सुना और तुरंत संतुलन स्थापित करते हुए कहा, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में हिन्दू धर्म और उसकी परंपराएं भी सदियों पुरानी हैं और समान संवैधानिक अधिकार रखती हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को सभी धार्मिक समुदायों के अधिकारों की रक्षा करनी है और किसी एक पक्ष को विशेष प्राथमिकता नहीं दी जा सकती।
क्या है मामला?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम की वैधता और इसके तहत वक्फ बोर्ड को दी गई शक्तियों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह कानून एकतरफा है और इससे दूसरे धार्मिक समुदायों की संपत्तियों पर भी असर पड़ सकता है।
सुनवाई में उठा बड़ा संवैधानिक सवाल
इस पूरे विवाद में एक बड़ा संवैधानिक सवाल यह भी है कि क्या किसी एक धर्म विशेष के लिए बनाए गए कानून को बाकी धर्मों के संदर्भ में भी न्यायपूर्ण और निष्पक्ष माना जा सकता है? इस मुद्दे पर अदालत की विस्तृत सुनवाई जारी है और आने वाले दिनों में यह मामला देश में धार्मिक और संवैधानिक बहस का केंद्र बन सकता है। सुनवाई की अगली तारीख तय की जा रही है, और सभी की नजर इस बात पर टिकी है कि सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील और ऐतिहासिक मुद्दे पर क्या फैसला देता है।